Maa Skandmata Temple : शारदीय नवरात्रि (Shardiya Navratri) के पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा अर्चना होती है। मां के इस स्वरूप को समर्पित मंदिर है शिव की नगरी वाराणसी (काशी) में। स्कंदमाता का यह मंदिर जैतपुरा क्षेत्र में स्थित प्रसिद्ध मां बागेश्वरी देवी मंदिर परिसर में मौजूद है। मान्यतानुसार, बागेश्वरी देवी मंदिर में मां स्कंदमाता के दर्शन से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
देवी का नाम स्कंदमाता कैसे पड़ा?
शास्त्रानुसार, स्कंदमाता को भगवान कार्तिकेय की माता के रूप में पूजा जाता है। स्कंद का मतलब कार्तिकेय (भगवान शिव के पुत्र) और स्कंदमाता का मतलब कार्तिकेय की माता अर्थात मां पार्वती। बागेश्वरी देवी मंदिर में भक्त एक साथ मां बागेश्वरी (गौरी) और स्कंदमाता (दुर्गा) के दर्शन करने आते हैं।
संतान सुख की मनोकामना होती है पूरी
स्कंदमाता ज्ञान और विवेक की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनके दर्शन मात्र से बच्चों को बुद्धि, विवेक की प्राप्ति होती है। जो भी मां के दर्शन करता उसे यश और सफलता की प्राप्ति होती है। साथ ही मां का स्वरूप होने के कारण, संतान सुख से वंचित लोगों के लिए भी मां स्कंदमाता के दर्शन शुभ माने जाते हैं।
स्कंदमाता की पूजा का महत्व
स्थानीय भक्तों में से कुछ भक्तों ने मां स्कंदमाता की पूजा के महत्व को बताया, उन्होंने बताया – “नवरात्रि में पंचमी के दिन स्कंदमाता की पूजा का विशेष महत्व है। हमने देखा है कि कई महिलाएं अपनी मनोकामनाएं लेकर यहां पर आती हैं और उनकी इच्छाएं पूरी होती हैं। नवरात्रि में यहां सुबह 11 बजे के बाद भक्तों का तांता लगता है। दर्शन के लिए श्रद्धालु लंबी कतार में खड़े होकर अपनी बारी का शांति से इंतेज़ार करते हैं। दर्शन करने के बाद उन्हें बड़ी शांति और प्रसन्नता मिलती है।”
बागेश्वरी देवी मंदिर के महंत के अनुसार, “इस मंदिर का नाम स्कंदमाता मंदिर और मां बागेश्वरी देवी मंदिर है। आज नवरात्रि का पांचवां दिन है। यहां पर स्कंदमाता अपने पुत्र बाल कार्तिकेय को गोद में लेकर विराजमान हैं। उनके साथ मां बागेश्वरी के भी दर्शन किए जाते हैं। यह मंदिर कई साल पुराना है। मां बागेश्वरी का पट वर्ष में केवल एक बार, नवरात्रि के पांचवें दिन खुलता है। जो लोग संतान सुख, बोलने, चलने या पढ़ने-लिखने में परेशानी का सामना कर रहे हैं, उन्हें दर्शन मात्र से बड़ा लाभ मिलता है।”