मां कालिका देवी मंदिर : मां काली का ऐसा मंदिर जहां हिन्दू मुस्लिम दोनों आते हैं; देवी के थान के साथ, है सैय्यद की मज़ार भी।

मां कालिका देवी मंदिर : मां काली का ऐसा मंदिर जहां हिन्दू मुस्लिम दोनों आते हैं; देवी के थान के साथ, है सैय्यद की मज़ार भी।
September 29, 2025 at 8:31 pm

मां कालिका देवी मंदिर : मां काली को समर्पित यह मंदिर भारत के उत्तर प्रदेश प्रांत के इटावा जनपद के बकेवर से 4 किलोमीटर दूर लखना कस्बे में स्थित है। यह मंदिर हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है। इस मंदिर की स्थापना त्रेतायुग में शत्रुघ्न ने वशिष्ठ के कहने पर करायी थी।

मां कालिका मंदिर की स्थापना के पीछे रहस्य

मान्यता है कि त्रेतायुग में मथुरा के राजा लवणासुर का पूरे क्षेत्र में आतंक था। उसे कई दिव्य अस्त्र भी प्राप्त थे। उस समय अयोध्या के राजा राम ने लवणासुर के वध के लिए अपने सबसे छोटे भाई शत्रुघ्न को भेजना सुनिश्चित किया। लेकिन महर्षि वशिष्ठ ने राजा राम को बताया कि लवणासुर को हर कोई नहीं मार सकता। उसे भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त है। इसलिए उसका वध करने के लिए शत्रुघ्न को देवी शक्ति की आराधना करनी होगी। इसके लिए वशिष्ठ ने शत्रुघ्न को 9 देवी के मंदिरों की स्थापना के लिए कहा। उन मंदिरों में से एक मंदिर लखना में स्थित मां कालिका देवी मंदिर है।

मां कालिका मंदिर का जीर्णोद्धार किसने कराया?

मां कालिका देवी मंदिर (Kalika Devi Temple Lakhna) का जीर्णोद्धार राजा जसवंत ने 18वीं शताब्दी में करवाया। यह मंदिर हिंदू मुस्लिम एकता का प्रतीक भी माना जाता है। यहाँ देवी के थान के साथ साथ सैय्यद की मज़ार भी है। देवी का यह रूप मां काली को समर्पित है।

मां कालिका मंदिर में देवी का चमत्कार

मां कालिका मंदिर की सबसे खास बात ये है कि देवी को अपने थान का स्थान कच्चा ही पसंद है। कालांतर में राजाओं ने कई बार उसे पक्का करने का प्रयास भी किया परंतु रात गुजरते फर्श के पत्थर अपने आप टूट जाते थे।

विवाह और संतान होने पर की जाती है ‘जात’

मां कालिका मंदिर में विवाह और संतान की मन्नतें मांगी जाती हैं। मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धालु नव विवाहित जोड़े सहित मां की जात करने आते हैं। इस पूजा में ढाई शेर आटे की पुड़िया और श्रृंगार देवी को चढ़ाया जाता है। यही पूजा उस समय भी होती है जब किसी संतान की मनोकामना पूर्ण होती है।

मजार पर चढ़तीं हैं कौड़ियां

मां कालिका मंदिर में एक सैयद की मज़ार भी है। इस मजार की देखरेख करने वाले बताते है कि यहां मजार मंदिर जीर्णोद्धार के समय से ही है। जो भी श्रद्धालु यहां देवी माँ के दर्शन करने आते है वह सभी लोग मजार पर कौड़ी, चादर एवं प्रसाद चढ़ाकर जाते है। 5-6 पीढ़ियों से सेवाधारियों का परिवार इस मजार की देख रेख कर रहा है।