बिहार की राजनीति में इस बार एक खामोश लेकिन निर्णायक बदलाव हुआ है — वह बदलाव है महिला मतदान शक्ति का। 2025 के विधानसभा चुनाव में पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने लगभग 8.82 % अधिक मतदान किया है, जिसका असर बड़ी संख्या में सीटों पर राष्ट्रीय लोकतान्त्रिक गठबंधन (एनडीए) के पक्ष में दिख रहा है।
विश्लेषकों के अनुसार, यह बढ़ा मतदान अकेला कारण नहीं, बल्कि कई योजनाएं, नेटवर्क और महिला-सक्षम नीतियाँ हैं जिनका परिणाम अब सामने आ रहा है। उदाहरणस्वरूप, 50 % पंचायती आरक्षण ने गांव-नगर में बड़ी संख्या में महिलाओं को राजनीतिक भागीदार बनाया है। इसके अतिरिक्त, मुफ्त साइकिल वितरण ने न सिर्फ स्कूल-लड़कियों को जोड़ने का काम किया बल्कि महिलाओं में गतिशीलता और आत्मविश्वास बढ़ाया। शराबबंदी से घरेलू हिंसा में कमी और महिलाओं की बचत में वृद्धि दर्ज की गई है — यह सामाजिक परिवर्तन का भी संकेत है।
केन्द्रीय भूमिका निभा रही है मुख्यमंत्री महिला रोजगार ऋण योजना, जीविका-दीदी नेटवर्क, महिला संवाद अभियान और अन्य लाभार्थी-केन्द्रित योजनाएं जिन्होंने महिलाओं को ‘लाभार्थी से भागीदार’ के रूप में स्थापित किया। यही मॉडल इस चुनाव में एनडीए के लिए राजनीतिक पूंजी बन गया है।
जब परंपरागत जातिगत समीकरण कमजोर पड़ने लगते हैं या गठबंधनों को चुनौतियाँ आती हैं, महिलाओं का यह वोट बैंक निर्णायक मोड़ ला सकता है — और इस बार ऐसा हो रहा है। 2020 की तुलना में इस बार महिलाएं कहीं अधिक संख्या में मतदान बूथ पर पहुँची हैं, जिससे चुनावी दिशा बदलने की संभावना मजबूत दिख रही है।
निष्कर्षतः, बदले हुए सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में महिला मतदाता अब न सिर्फ वोट दे रही हैं बल्कि चुनाव-संपर्क, प्रचार और नीतिगत प्रक्रियाओं में सक्रिय भूमिका निभा रही हैं — और यही बदलाव नीतीश कुमार व एनडीए की राजनीति की सबसे बड़ी शक्ति साबित हो रहा है।