मां शैलपुत्री को समर्पित यह प्राचीन दुर्गा मंदिर उत्तरप्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित है; यहां दर्शन मात्र से होती है हर मनोकामना पूरी।

मां शैलपुत्री को समर्पित यह प्राचीन दुर्गा मंदिर उत्तरप्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित है; यहां दर्शन मात्र से होती है हर मनोकामना पूरी।
September 22, 2025 at 3:31 pm

मां शैलपुत्री मंदिर, वाराणसी : मां दुर्गा को समर्पित साल भर में 4 नवरात्रि आते हैं। जिसमें 2 गुप्त नवरात्रि होते हैं। ये सभी नवरात्र माता के 9 रूपों को समर्पित है। नवरात्रि का पहला दिन माता शैलपुत्री का माना जाता है। मां शैलपुत्री को समर्पित एक प्राचीन मंदिर पूरे भारत में प्रसिद्ध है। यह मंदिर वाराणसी में स्थित है।

दर्शन मात्र से होती है हर मनोकामना पूरी

मां शैलपुत्री को समर्पित इस मंदिर में दूर-दराज से लोग दर्शन करने के लिए आते है। मान्यता है कि यहां पर आकर दर्शन मात्र से ही भक्तों की हर मनोकामना पूरी हो जाती है। माता शैलपुत्री का यह मंदिर घाटों के शहर कहे जाने वाले वाराणसी में है।

दर्शन के लिए लगतीं हैं लंबी कतार

भारत के उत्तरप्रदेश राज्य के वाराणसी के अलईपुर में स्थित मां शैलपुत्री के इस प्राचीन मंदिर की लोकप्रियता इतनी अधिक है कि भक्त अपने आप ही खींचे चले आते हैं। दर्शन जल्दी हों इसके लिए मंदिर परिसर में एक दिन पहले से भक्तों की लंबी कतार लग जाती है।

मां शैलपुत्री के दर्शन करने का महत्व

नवरात्र में मां शैलीपुत्री के इस मंदिर में पूजा करने का खास महत्व है। मान्यता है कि अगर आपके वैवाहिक जीवन में कोई परेशानी आ रही है तो माता के रूप के दर्शन करने मात्र से आपके सभी कष्टों से निजात मिल जाती है। इस मंदिर को लेकर एक कथा प्रचलित है। इसके अनुसार माना जाता है कि मां कैलाश से काशी आई थी। जानिए आखिर कथा क्या है।

मां शैलपुत्री के मंदिर की प्रचलित कथा

मां शैलपुत्री मंदिर के बारे में प्रचलित कथा के अनुसार, मां पार्वती ने हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया। शैल का मतलब पर्वत से होता है। इसलिए वह शैलपुत्री कहलाईं। एक बार की बात है, माता पार्वती (शैलपुत्री) किसी बात पर अपने पति भगवान शिव से नाराज हो गईं और कैलाश से काशी आ गईं। इसके बाद जब महादेव शिव उन्हें मनाने आए तो उन्होंने भोलेनाथ से आग्रह करते हुए कहा कि यह स्थान (काशी) उन्हें बहुत प्रिय लगा है और वह वहां से जाना नहीं चाहतीं। तभी से माता यहीं विद्यमान हैं और भक्तों को दर्शन देकर उनकी पीड़ा हरतीं हैं।

मां शैलपुत्री के मंदिर में आरती और श्रृंगार

माता शैलपुत्री के इस मंदिर में माता की तीन बार आरती होती है। साथ ही माता को तीन बार सुहाग का सामान भी चढ़ता है। माता शैलपुत्री का यह रूप भगवती दुर्गा के 9 रूपों में पहला स्वरूप है। पर्वतराज हिमालय के यहां जन्म लेने से उनका नाम शैलपुत्री पड़ा। इनका वाहन वृषभ है। उनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है। मान्यतानुसार, देवी के इसी स्वरूप ने ही शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया था। इसके बाद माता पार्वती (शैलपुत्री) का विवाह शिव के साथ किया गया।