श्री शनि महाराज (आली), कपासन, चित्तौड़गढ़

श्री शनि महाराज (आली), कपासन, चित्तौड़गढ़
May 31, 2025 at 5:45 am

शनिदेव को समर्पित यह मंदिर राजस्थान प्रांत के चित्तौड़गढ़ जिले के कपासन उपखण्ड के आली गांव में स्थित है। करीब 150 साल पुराना यह मंदिर मेवाड़ समेत मारवाड़, मालवा आदि क्षेत्रों में अपनी प्रसिद्धि पाकर अब राजस्थान का प्रमुख तीर्थ स्थल बन चुका है। हर शनिवार और अमावस्या पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां आते हैं और शनिदेव की कृपा पाने के लिए अनुष्ठान करते हैं। वैशाख कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर यहां पर तीन दिवसीय मेला भी लगता है, जिसमें लाखों लोग पहुंचे हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में शनि महाराज को चढ़ाए गए तेल को लगाने से चर्म रोग ठीक हो जाता है।

एक किवदंती के अनुसार, श्री शनि महाराज आली कपासन (Shani Maharaj Aali Kapasan) मंदिर में स्थापित शनि देव की मूर्ति मेवाड़ के महाराणा स्व. श्री उदयसिंह अपने हाथी की ओदी पर रखकर उदयपुर की ओर ले जा रहे थे। लेकिन इस स्थान पर पहुंचने पर मूर्ति गायब हो गयी और बहुत ढूंढने के बाद भी नहीं मिली। बहुत सालों के बाद एक दिन इस इलाके के ऊंचनार खुर्द के रहने वाले जोतमल जाट के खेत में बेर की झाड़ी के नीचे शनिदेव की मूर्ति का कुछ हिस्सा प्रकट हुआ। स्थानीय लोगों ने इसकी पूजा कर तेल प्रसाद बालभोग अर्पित किया। कोशिश की गयी की मूर्ति को जमीन से निकाल लिया जाए। लेकिन ये संभव नहीं हुआ। शनिदेव की महिमा ऐसी थी की अचानक गांव में एक संत महात्मा आए। स्थानीय लोगों ने उन्हे मूर्ति के बारे में बताया तो वो भी मूर्ति के दर्शन के लिए पहुंचे। मूर्ति को महात्मा ने जमीन से ऊपर की तरफ खींचा तो ज्यादातर हिस्सा बाहर गया। कुछ देर बाद ये महात्मा भी गायब हो गये। तब से इसी स्थान पर ये मंदिर बना है।

शनि महाराज के मंदिर में प्राकृतिक तेलकुंड भी है। जिसमें शनिदेव को चढ़ाए जाने वाला तेल एकत्रित होता है। इस तेल का इस्तेमाल चर्म रोगों में होता है। बता दें, इस तेल को बेचने की कोशिश हुई थी लेकिन जब ऐसा किया गया तो तेल के गुण ही समाप्त हो गए और वो मात्र तरल पानी रह गया, ऐसे में इसे शनिदेव की इच्छा मानते हुए, तेल का व्यवसायिक इस्तेमाल ना करने की सोची गयी। मान्यतानुसार, मंदिर में सबसे पहले पूजा करने वाले महाराज श्री रामगिरि जी रेबारी ने के देवलोक गमन पर उनकी समाधि मंदिर के पास ही बननी थी। लेकिन जब समाधि के लिए नींव खोदी जा रही थी तो वहां पर प्राकृतिक तेल निकला। जिसे कुंड बनाकर रखा गया यहीं नहीं मंदिर में शनिदेव को चुरमा बाटी का भोग लगता है। लेकिन मीठा होने के बाद भी भोग लगने से पहले चीटिंयां भी इस प्रसाद को नहीं छूती है।