देवभूमि उत्तराखंड का प्रवेश द्वार कहलाने वाला ऋषिकेश, जो कभी योग, ध्यान और आध्यात्मिकता के लिए प्रसिद्ध था, अब सोशल मीडिया रील्स के शौक का शिकार होता जा रहा है। पहले जहां गंगा घाटों पर भक्त आरती और ध्यान में लीन रहते थे, अब वहां कैमरे, ट्राइपॉड और तेज म्यूजिक का शोर गूंजता है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि शहर की पहचान धीरे-धीरे मिटती जा रही है। जो स्थान कभी सुकून और आध्यात्मिकता का प्रतीक था, वहां अब हर तरफ भीड़, गंदगी और ट्रैफिक-जाम का माहौल है।
रील्स के चक्कर में भुला दी धार्मिक आस्था
“पहले गंगा घाटों पर शांति और श्रद्धा का माहौल होता था। अब लोग कैमरे सेट करके ऊंची आवाज़ में म्यूजिक चलाते हैं और नाचते हैं। ये सब ऋषिकेश की पवित्रता को खत्म कर रहा है।”
ऋषिकेश एक तीर्थ स्थल है, न कि मनोरंजन का अड्डा। यहां आने वालों को इसे श्रद्धा और अनुशासन के साथ देखना चाहिए।
बढ़ती भीड़ और ट्रैफिक से बिगड़ा संतुलन
“हर दिन ट्रैफिक जाम लगता है। पर्यटक गाड़ियां गलत तरीके से पार्क करते हैं, सड़क पर गंदगी फैलाते हैं। न किसी को नियमों की परवाह है, न स्थानीयों की परेशानी का।”
घाटों की सफाई हर किसी की जिम्मेदारी है। अगर लोग थोड़ी जागरूकता दिखाएं, तो ऋषिकेश फिर से पहले जैसा स्वच्छ और शांत बन सकता है।
‘संस्कृति के खिलाफ है ये व्यवहार’
आजकल गंगा किनारे लोग शराब पीते हैं, कचरा फैलाते हैं, जो हमारी संस्कृति के खिलाफ है।
स्थानीयों का कहना है कि प्रशासन को अब सख्ती बरतनी चाहिए ताकि ऋषिकेश की धार्मिक पहचान और शांति फिर से लौट सके।