जब एक सपना टूट गया, तो कैसे बने “मिसाइल मैन” — डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की प्रेरक कहानी

जब एक सपना टूट गया, तो कैसे बने “मिसाइल मैन” — डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की प्रेरक कहानी
October 15, 2025 at 1:46 pm

भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम की ज़िन्दगी अनेक संघर्षों और दृढ़ निश्चय से भरी रही। एक समय ऐसा था, जब उनका सबसे बड़ा सपना टूट गया — लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। फिर देखिए कैसे उन्होंने “मिसाइल मैन” बनने की यात्रा तय की।

टूट गया वो पहला सपना

कलाम का बचपन का एक सशक्त सपना था — भारतीय वायु सेना में पायलट बनना। उन्होंने इसके लिए कटिबद्धता से तैयारी की, लेकिन चयन परीक्षा में नौवें स्थान पर आए, जबकि केवल शीर्ष आठ उम्मीदवारों को चुना जाता था।
यह असफलता उनके लिए बहुत बड़ी आशा को धोखा देने जैसा थी — लेकिन उन्होंने इसे जीवन की दिशा बदलने वाला अवसर बनाया।

नए रास्ते पर कदम

परीक्षा में सफल न हो पाने के बाद, उन्होंने न केवल निराशा को गले लगाया बल्कि एक और पेशेवर विकल्प को स्वीकार किया। उन्होंने DRDO (रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन) में वैज्ञानिक सहायक (Senior Scientific Assistant) के रूप में काम शुरू किया।
यहीं से उनकी वैज्ञानिक यात्रा आगे बढ़ी, और उन्होंने धीरे-धीरे रक्षा व अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाई।

मिसाइल कार्यक्रम के प्रेरक नेता

कलाम ने भारतीय रक्षा और अंतरिक्ष कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

  • उन्होंने IGMDP (Integrated Guided Missile Development Programme) की अगुवाई की, जिसके अंतर्गत भारत ने कई महत्वपूर्ण मिसाइल प्रणालियाँ विकसित कीं।
  • उनकी रचनाएँ जैसे पृथ्वी, अग्नि, आकाश, त्रिशूल और नाग मिसाइलें, भारत की सामरिक क्षमताओं की रीढ़ बन गईं।
  • अग्नि श्रृंखला विशेष रूप से महत्वपूर्ण रही — इनसे भारत को लंबी दूरी तक मार करने की क्षमता मिली।
  • 1998 में हुए पोकरण II परमाणु परीक्षणों में भी कलाम की भूमिका निर्णायक थी, जब वे प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार और DRDO प्रमुख थे।


लेकिन कलाम की महानता सिर्फ तकनीक तक सीमित नहीं थी। उन्होंने भारत के वैज्ञानिक समुदाय और युवाओं में यह विश्वास जगाया कि भारतीयों में क्षमता है — और उन्हें अवसर मिले तो वे विश्वस्तर के आविष्कार कर सकते हैं।
उनकी पुस्तक “Wings of Fire” और “India 2020” ने देश को यह संदेश दिया कि आत्मनिर्भरता और नवाचार ही भारत की असली ताकत हैं।

बचपन से राष्ट्रपति बनने तक

अपने वैज्ञानिक कार्य से प्रसिद्धि पाने के बाद, कलाम 2002 में भारत के 11वें राष्ट्रपति बने।
उन्होंने राष्ट्रपति रहते भी शिक्षा, विज्ञान और युवा सशक्तिकरण को अपना मिशन बनाए रखा।
27 जुलाई 2015 को, वह एक व्याख्यान कार्यक्रम के दौरान IIM Shillong में लगे हार्ट अटैक के चलते दुनिया से विदा हो गए — लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है।

निष्कर्ष

डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जीवन यह सिखाता है कि एक टूटे हुए सपने से डरना नहीं चाहिए — बल्कि उसे प्रेरणा में बदलना चाहिए।
उन्होंने असफलता को पीछे छोड़, देश की रक्षा और विज्ञान में अमिट योगदान दिया। आज भारत का रक्षा एवं अंतरिक्ष क्षेत्र, युवा वैज्ञानिकों की अभिरुचि, और आत्मनिर्भरता की दिशा — सब उस यात्रा की प्रतिध्वनि हैं, जिसे कलाम ने अपनी मेहनत और उम्मीद से तय किया।