करवा चौथ 2025: सुहागिनों का पावन व्रत, जानें तिथि, पूजा विधि, कथा और इसका महत्व

करवा चौथ 2025: सुहागिनों का पावन व्रत, जानें तिथि, पूजा विधि, कथा और इसका महत्व
October 9, 2025 at 5:42 pm

भारतीय संस्कृति में करवा चौथ का पर्व प्रेम, आस्था और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सुहागिन महिलाएं यह व्रत अपने पति की लंबी उम्र और वैवाहिक सुख की कामना के लिए रखती हैं। यह पर्व केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं बल्कि स्त्री के अटूट प्रेम और विश्वास का प्रतीक है।

करवा चौथ 2025: दिन और तारीख

द्रिक पंचांग के अनुसार, वर्ष 2025 में करवा चौथ का पर्व शुक्रवार, 10 अक्टूबर को मनाया जाएगा। यह पवित्र व्रत कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को पड़ता है, जो हर साल नवरात्रि के ठीक बाद आती है।

इस वर्ष तिथि को लेकर कुछ भ्रम देखा गया है, क्योंकि चतुर्थी तिथि दो दिनों तक रहेगी। पंचांग के अनुसार, यह तिथि 9 अक्टूबर (गुरुवार) रात 10:54 बजे से शुरू होकर 10 अक्टूबर (शुक्रवार) शाम 7:38 बजे समाप्त होगी।

चूंकि करवा चौथ का व्रत चतुर्थी तिथि के प्रभावी दिन पर रखा जाता है, इसलिए 2025 में करवा चौथ शुक्रवार, 10 अक्टूबर को ही मनाया जाएगा।

चंद्रोदय का समय और शुभ मुहूर्त

करवा चौथ के दिन चंद्रोदय का समय हर शहर में थोड़ा अलग होता है, लेकिन सामान्य रूप से रात 8:00 बजे से 8:15 बजे के बीच चंद्रमा का दर्शन किया जा सकेगा। पूजा और व्रत का सबसे शुभ समय शाम 5:45 बजे से रात 7:00 बजे तक रहेगा। इस अवधि में करवा माता और चंद्रमा की आराधना करना सबसे फलदायी माना जाता है।

करवा चौथ व्रत की विधि

करवा चौथ की शुरुआत सुबह की सरगी’ से होती है, जिसे सास अपनी बहू को प्रेमपूर्वक देती है। सरगी में सूखे मेवे, मिठाइयाँ, फल और पारंपरिक व्यंजन शामिल होते हैं। महिलाएं सूर्योदय से पहले सरगी खाकर दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं।

शाम के समय वे सुहाग के लाल या पीले वस्त्र धारण करती हैं, सोलह श्रृंगार करती हैं और पूजा की तैयारी करती हैं। पूजा में करवा, दीपक, कुमकुम, चावल, रोली, और जल से भरा कलश उपयोग किया जाता है।

महिलाएं करवा माता और भगवान शिव-पार्वती की पूजा करती हैं, करवा चौथ की कथा सुनती हैं और चंद्रमा को अर्घ्य देकर अपने पति की दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं। पूजा के बाद पति के हाथों से जल ग्रहण करके व्रत का समापन करती हैं।

करवा चौथ की पौराणिक कथा

प्राचीन कथाओं के अनुसार, एक रानी वीरवती ने अपने पति की दीर्घायु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा। दिनभर उपवास रखने के बाद जब वह कमजोर हो गई, तो उसके भाइयों ने छल से दीपक की लौ को छलनी से दिखाकर कहा कि चंद्रमा निकल आया है। वीरवती ने व्रत तोड़ दिया, और उसी क्षण उसके पति की मृत्यु हो गई।

रानी ने तपस्या की और अगले वर्ष पुनः करवा चौथ का व्रत रखा, जिससे उसे अपने पति का जीवन पुनः प्राप्त हुआ। तभी से यह व्रत सुहागिनों के लिए अमर प्रेम और निष्ठा का प्रतीक बन गया।

करवा चौथ का धार्मिक और सामाजिक महत्व

करवा चौथ भारतीय समाज में वैवाहिक जीवन के प्रति नारी की समर्पित भावना का उत्सव है। इस दिन महिलाएं एक-दूसरे को श्रृंगार सामग्री और करवा भेंट करती हैं। यह न केवल पारिवारिक बंधन को मजबूत करता है, बल्कि समाज में प्रेम, एकता और सौहार्द का संदेश भी देता है।

आधुनिक समय में करवा चौथ

आज के समय में करवा चौथ का स्वरूप आधुनिक जरूर हुआ है, पर इसकी भावनाएं अब भी वैसी ही हैं। कई पति भी अब अपनी पत्नियों के साथ व्रत रखते हैं, जिससे यह त्योहार समानता और प्रेम का प्रतीक बन गया है।

सोशल मीडिया के युग में यह त्योहार फैशन और परंपरा के सुंदर संगम के रूप में देखा जाता है। बाजारों में साड़ियों, मेंहदी, गहनों और सजावट की वस्तुओं की जबरदस्त रौनक रहती है।

निष्कर्ष

करवा चौथ का व्रत केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि प्रेम, त्याग और विश्वास का उत्सव है। यह दिन हर उस महिला की श्रद्धा को दर्शाता है जो अपने जीवनसाथी के लिए ईश्वर से मंगल कामना करती है। हर युग में यह व्रत भारतीय नारी की शक्ति और भावनाओं का प्रतीक रहा है और आगे भी रहेगा।