शनिदेव को समर्पित यह मंदिर भारत के उत्तराखंड प्रांत के उत्तरकाशी जिले के खरसाली गांव में स्थित है। यह गांव समुद्र तल से लगभग 2,675 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। खरसाली में स्थित यह मंदिर शनिदेव के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है, जो 800 वर्ष से ज्यादा पुराना माना जाता है। यात्री चारधाम यात्रा के दौरान शनिदेव के दर्शन करके यमुनोत्री जाते हैं। सर्दियों के मौसम में देवी यमुना की मूर्ति शनिदेव मंदिर में रखी जाती थी। हालांकि, अब मां यमुना का अपना मंदिर निर्माण हो चुका है। यहां तीन मंजिला मंदिर बनाया गया है। माना जाता है कि यह मंदिर पांडवों के द्वारा बनाया गया था।
शास्त्रानुसार, शनि महाराज मां यमुना के भाई हैं। समेश्वर (सोमेश्वर) महाराज के मुख्य पुजारी ने बताया कि हर साल शनि महाराज की अगुवाई में मां यमुना की डोली अपने मायके खरसाली से यमुनोत्री धाम के लिए प्रस्थान करती हैं। इसके बाद, विधि विधान से धाम के कपाट देश-विदेश के श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खोल दिए जाते हैं। मान्यता है कि शनि महाराज की पूजा-अर्चना से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है।
शनि मंदिर में एक अखंड ज्योति मौजूद है। कहा जाता है कि इस अखंड ज्योति के दर्शन मात्र से ही जीवन के सारे दुख दूर हो जाते हैं। खरसाली में ही मां यमुना अपने शीतकालीन प्रवास के लिए आती है और खास बात यह है कि खरसाली में मां यमुना के भाई शनिदेव भी मौजूद हैं। यह मंदिर लकड़ी के पत्थरों से तैयार किया गया है। इसकी कलाकृति शैली बेहद ही प्राचीन है। यमनोत्री धाम से लगभग 5 किलोमीटर पहले ये मंदिर पड़ता है। साल भर शनि मंदिर में बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते रहते हैं। सावन की संक्रांति में खरसाली में तीन दिवसीय शनि देव मेला आयोजित किया जाता है।
शनि देव के मंदिर में दो बड़े पात्र रखे गए हैं। जो आकार में एक छोटा है और एक बड़ा है। जिनके बारे में कहा जाता है कि कार्तिक अमावस्या और कार्तिक पूर्णिमा की रात को वे अपने आप ही पश्चिम से पूरब और पूरब से पश्चिम को दिशा बदल देते हैं। इन पात्रों को रिखोला और पिखोला कहा जाता है। ये पात्र मंदिर में सदियों से जंजीर से बांधे हैं।