बांके बिहारी मंदिर, वृंदावन: भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित यह मंदिर भारत के उत्तरप्रदेश प्रांत के मथुरा जिले की धार्मिक नगरी वृंदावन में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1860 में हुआ था तथा यह राजस्थानी वास्तुकला का एक नमूना है। इस मंदिर के मेहराब का मुख तथा यहाँ स्थित स्तंभ इस तीन मंजिला इमारत को अनोखी आकृति प्रदान करते हैं। बांके बिहारी की यह छवि स्वामी हरिदास जी ने निधिवन में खोजी थी। स्वामी हरिदास जी भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे और उनका संबंध निम्बर्क पंथ से था। इस मंदिर का पुनर्निर्माण 1921 में स्वामी हरिदास जी के अनुयायियों के द्वारा कराया गया था।
बांके बिहारी मंदिर (Banke Bihari Temple) नाम के पीछे एक बड़ा रहस्य है। बांके का अर्थ होता है तीन कोणों पर मुड़ा हुआ, जो वास्तव में बांसुरी बजाते भगवान श्रीकृष्ण की ही एक मुद्रा है। बांसुरी बजाते समय भगवान श्रीकृष्ण का दाहिना घुटना बाएं घुटने के पास मुड़ा रहता था, तो सीधा हाथ बांसुरी को थामने के लिए मुड़ा रहता था। इसी तरह उनका सिर भी इसी दौरान एक तरफ हल्का सा झुका रहता था। श्रीकृष्ण के इसी रूप की वजह से मंदिर का नाम बांके बिहारी मंदिर पड़ा।
मंदिर की उत्पत्ति के पीछे एक प्रचलित कथानुसार, भगवान श्रीकृष्ण के भक्त स्वामी हरिदास जी वृंदावन में स्थित श्री कृष्ण की रास स्थली निधिवन में बैठकर भगवान को अपने संगीत से रिझाया करते थे। इनकी भक्ति और गायन से रीझकर भगवान श्री कृष्ण इनके सामने आ जाते थे। एक दिन इनके एक शिष्य ने कहा कि आप हमें भी भगवान कृष्ण के दर्शन करवाएं। इसके बाद हरिदास जी श्री कृष्ण की भक्ति में डूबकर भजन गाने लगे और थोड़ी देर बाद राधा कृष्ण की युगल जोड़ी प्रकट हुई। श्री कृष्ण और राधा ने हरिदास के पास रहने की इच्छा प्रकट की लेकिन हरिदास जी ने श्रीकृष्ण से कहा कि प्रभु मैं तो संत हूं, आपको लंगोट पहना दूंगा लेकिन माता को नित्य आभूषण कहां से लाकर दूंगा। अपने प्रिय भक्त की बात सुनकर राधा कृष्ण की युगल जोड़ी एकाकार होकर एक विग्रह रूप में प्रकट हुई। हरिदास जी ने इस विग्रह को बांके बिहारी नाम दिया।
मान्यतानुसार, मंदिर में स्थापित काले रंग की प्रतिमा में साक्षात् श्री कृष्ण और राधा समाए हुए हैं। इसलिए इनके दर्शन मात्र से राधा कृष्ण के दर्शन का फल मिल जाता है। प्रत्येक वर्ष मार्गशीर्ष मास की पंचमी तिथि को बांके बिहारी मंदिर में बांके बिहारी प्रकटोत्सव मनाया जाता है। वैशाख माह की तृतीया तिथि पर जिसे अक्षय तृतीया कहा जाता है उस दिन पूरे एक साल में सिर्फ इसी दिन बांके बिहारी के चरणों के दर्शन होते हैं। इस दिन भगवान के चरणों के दर्शन बहुत शुभ फलदायी होता है।