शक्तिपीठ – कांगड़ा देवी मंदिर/श्री ब्रजेश्वरीमाता मंदिर: 52 शक्तिपीठों में से एक मां भगवतीदुर्गा का यह शक्तिपीठ भारत के हिमाचल प्रदेश प्रांत के कांगड़ा शहर में स्थित है। यहां माता भगवान शिव के भैरव नाथ रूप के साथ विराजमान हैं।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यहां माता सती का बांया वक्ष गिरा था। मां का यह धाम नगरकोट के नाम से भी प्रसिद्ध है। मंदिर के पास में ही बाण गंगा है, जिसमें स्नान करने का विशेष महत्व है। इस मंदिर में सालभर भक्त मां के दरबार में आकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं लेकिन नवरात्र के दिनों मंदिर की शोभा देखने लायक होती है। मंदिर में आकर भक्तों की पीड़ा दर्शन मात्र से दूर हो जाती है।
मान्यतानुसार, महाभारत काल में पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था। मां ने पांडवों को सपने में दर्शन दिए और मंदिर के निर्माण की बात की थी। उसके बाद पांडवों ने मंदिर का निर्माण कराया। कालांतर में, इस मंदिर को विदेशियों द्वारा भी कई बार लूटा गया। महमूद गजनवी ने 1009 से इस मंदिर को पांच बार लूटा था। इसके बाद 1337 में मोहम्मद बिन तुगलक और पांचवी शताब्दी में सिकंदर लोदी ने भी इस मंदिर को लूटकर तबाह कर दिया था। एक बार अकबर यहां आए थे और मंदिर के पुन: निर्माण में सहयोग भी किया था। फिर साल 1905 में भूंकप से मंदिर पूरी तरह तहस नहस हो गया, जिसे सरकार द्वारा वर्तमान मंदिर को 1920 में दोबारा बनवाया गया।
ब्रजेश्वरी मंदिर में माता पिंडी रूप में विराजमान हैं। यहां माता का प्रसाद तीन भागों में विभाजति करके चढ़ाया जाता है। पहला प्रसाद महासरस्वती, दूसरा महालक्ष्मी और तीसरा महाकाली को चढ़ाकर भक्तों में बांटा जाता है। मंदिर के गर्भगृह में भी तीन पिंडी हैं, पहली मां ब्रजेश्वरी, दूसरी मां भद्रकाली और तीसरी सबसे छोटी पिंडी एकादशी की है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एकादशी के दिन चावल का प्रयोग नहीं किया जाता लेकिन इस शक्तिपीठ में मां एकादशी स्वयं मौजूद हैं, इसलिए उनको प्रसाद के रूप में चावल ही चढ़ाया जाता है।
श्री ब्रजेश्वरी माता मंदिर में हिंदुओं और सिखों के अलावा मुस्लिम भी आस्था के फूल चढ़ाते हैं। मंदिर में मौजूद तीन गुंबद तीन धर्मों के प्रतीक हैं। पहला गुंबद हिंदू धर्म का है, जिसकी आकृति मंदिर जैसी है, दूसरा सिख संप्रदाय का और तीसरा गुंबद मुस्लिम समाज का प्रतीक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महिषासुर को मारने के बाद मां दुर्गा को कुछ चोटे आई थीं। उन चोटों को दूर करने के लिए देवी मां ने अपने शरीर पर मक्खन लगाया था। जिस दिन मां ने यह मक्खन लगाया था, उस दिन देवी की पिंडी को मक्खन से ढका जाता है और सप्ताह भर उत्सव मनाया जाता है।
मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि मंदिर भविष्य में होने वाली घटनाओं के बारे में भक्तों को पहले से ही आगाह कर देता है। यहां आसपास भविष्य में अगर कोई बड़ी समस्या आने वाली होती है तो भैरव बाबा की मूर्ति से आंसुओं का गिरना शुरू हो जाता है। तब मंदिर के पुजारी विशाल हवन का आयोजन कर मां से आपदा को टालने के लिए निवेदन करते हैं। भैरव बाबा के मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित है। मान्यतानुसार, बाबा भैरव की मूर्ति 5000 साल पुरानी है। मंदिर के मुख्य द्वारा के आगे ध्यानु भगत की मूर्ति मौजूद है, जिन्होंने अकबर के समय में देवी को अपना सिर चढ़ाया था।