उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर हलचल मचाने की तैयारी में हैं बहुजन समाज पार्टी (BSP) की मुखिया मायावती। समाजवादी पार्टी (SP) के PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूले का जवाब देने के लिए बसपा ने अब OBC और मुस्लिम समाज पर फोकस बढ़ा दिया है।
1 नवंबर को लखनऊ में बसपा की ओर से ओबीसी समाज की बड़ी बैठक बुलाई गई है। यह बैठक BSP के राजनीतिक मिशन 2027 की दिशा तय करने वाली मानी जा रही है।
BSP का फोकस: सपा के बेस वोट बैंक पर नज़र
जानकारी के मुताबिक, मायावती अब सपा के पारंपरिक वोट बैंक — यानी OBC और मुस्लिम वर्ग — को अपनी ओर आकर्षित करने में जुटी हैं। सपा जहां दलितों की तरफ रुख कर रही है, वहीं बसपा अब पिछड़े और अल्पसंख्यक वर्ग को जोड़ने की रणनीति पर काम कर रही है।
BSP ने हाल ही में मुस्लिम भाईचारा कमेटियां गठित की हैं और अब पिछड़ा वर्ग भाईचारा कमेटी की बैठक बुलाकर सपा के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश की जा रही है।
ओबीसी समाज पर फोकस क्यों?
उत्तर प्रदेश में OBC आबादी करीब 50 प्रतिशत है। इनमें से लगभग 8 प्रतिशत यादव समुदाय सपा का कोर वोट बैंक माना जाता है। वहीं कुर्मी, निषाद, राजभर जैसे समुदायों के वोट क्षेत्रीय दलों में बंटे हुए हैं।
बसपा का मकसद अब इस बिखरे हुए 30 प्रतिशत OBC वोट बैंक को अपने साथ जोड़ना है। पार्टी चाहती है कि गैर-यादव पिछड़ों को एकजुट कर BSP के पक्ष में माहौल बनाया जाए।
पुराना फॉर्मूला फिर से अपनाएंगी मायावती
वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेंद्र शुक्ला का कहना है कि 2007 में मायावती ने OBC और दलितों को एक साथ लाकर प्रचंड बहुमत हासिल किया था। उस समय बसपा में बाबू कुशवाहा, स्वामी प्रसाद मौर्य, ओमप्रकाश राजभर, राम अचल राजभर, रामप्रसाद चौधरी, दद्दू प्रसाद, सुखदेव राजभर और फागू चौहान जैसे प्रभावशाली OBC चेहरे पार्टी में थे।
मायावती एक बार फिर उसी ‘सोशल इंजीनियरिंग’ फॉर्मूले को दोहराने की तैयारी में हैं।
2027 विधानसभा चुनाव को लेकर नई रणनीति
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि BSP की यह कवायद 2027 के विधानसभा चुनाव की रणनीति का हिस्सा है। मायावती अब दलितों के साथ-साथ पिछड़े और मुस्लिम मतदाताओं को जोड़कर तीसरा बड़ा मोर्चा बनाने की कोशिश कर रही हैं।
अगर यह प्रयोग सफल होता है, तो BSP यूपी की राजनीति में फिर से मजबूत वापसी कर सकती है।