हनुमान धारा मंदिर, चित्रकूट, उत्तरप्रदेश

हनुमान धारा मंदिर, चित्रकूट, उत्तरप्रदेश
July 15, 2025 at 6:28 am

हनुमान धारा मंदिर: प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमान जी को समर्पित यह मंदिर भारत के उत्तरप्रदेश प्रांत के चित्रकूट जिले में स्थित है। वर्तमान में यह चित्रकूट स्थान उत्तर प्रदेश के बांदा जिले की करवी (कर्वी) तहसील तथा मध्यप्रदेश के सतना जिले की सीमा पर स्थित है। उत्तर प्रदेश के चकाला सीतापुर नामक स्थान के समीप यह हनुमान मंदिर स्थापित है। चकाला सीतापुर से हनुमान धारा की दूरी 3 मील है। यह स्थान पर्वतमाला के मध्य भाग में स्थित है। पहाड़ के सहारे हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति के ठीक सिर पर दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से निरंतर पानी बहता रहता है। पहाड़ी के शिखर पर स्थित हनुमान धारा में हनुमान की एक विशाल मूर्ति है। मूर्ति के सामने तालाब में झरने से पानी गिरता है।

हनुमान धारा मंदिर (Hanuman Dhara Mandir) से ठीक 100 सीढ़ी ऊपर सीता रसोई है, जहां माता सीता ने भोजन बना कर भगवान श्रीराम और देवर लक्ष्मण को खिलाया था। निकटतम रेलवे स्टेशन कर्वी है, जो इलाहाबाद से 120 किलोमीटर दूर है। मंगलवार और शनिवार के अलावा नवरात्रों और हनुमान जी के दोनों जन्मदिनों पर (हनुमान जी के जन्मदिन पर विद्वानों में मतभेद है) श्रद्धालुओं की बड़ी भीड़ होती है।

पौराणिक कथानुसार, श्रीराम के अयोध्या में राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन हनुमानजी ने भगवान श्रीरामचंद्र से कहा ‘हे प्रभु, लंका को जलाने के बाद तीव्र अग्नि से उत्पन्न गरमी मुझे बहुत कष्ट दे रही है। मुझे कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे मैं इससे मुक्ति पा सकूं। इस कारण मैं कोई अन्य कार्य करने में बाधा महसूस कर रहा हूं। कृपया मेरा संकट दूर करें।’ तब प्रभु श्रीराम ने मुस्कराते हुए कहा, ‘चिंता मत करो। भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को यह स्थान बताया। आप चित्रकूट पर्वत पर जाइये। वहां आपके शरीर पर अमृत तुल्य शीतल जलधारा के लगातार गिरने से आपको इस कष्ट से मुक्ति मिल जाएगी।’

हनुमान जी ने चित्रकूट आकर विंध्य पर्वत श्रंखला की एक पहाड़ी में श्री राम रक्षा स्त्रोत का पाठ 1008 बार किया। जैसे ही उनका अनुष्ठान पूरा हुआ ऊपर से एक जल की धारा प्रकट हो गयी। जलधारा शरीर में पड़ते ही हनुमान जी के शरीर को शीतलता प्राप्त हुई। आज भी यहां वह जल धारा के निरंतर गिरती है। जिस कारण इस स्थान को हनुमान धारा के रूप में जाना जाता है। धारा का जल पहाड़ में ही विलीन हो जाता है। उसे लोग प्रभाती नदी या पातालगंगा कहते हैं।