श्रीनाथ जी मंदिर: भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित यह मंदिर भारत के राजस्थान प्रांत के राजसमंद जिले के नाथद्वारा शहर में स्थित है। अरावली पर्वत माला की गोद में बनास नदी के किनारे नाथद्वारा में स्थित इस प्रमुख वैष्णव तीर्थस्थल पर श्रीनाथजी मंदिर में भगवान कृष्ण सात वर्षीय ‘शिशु’ अवतार के रूप में विराजित हैं। श्रीनाथजी मंदिर का निर्माण 17वीं सदी में हुआ था और इसे महाराजा राज सिंह ने बनवाया था। मंदिर के आसपास एक विशाल परिसर है जिसमें प्रवेश करने के लिए चार दरवाजे हैं। मंदिर के भीतर श्रीनाथजी की मूर्ति स्थापित है, जो श्यामल रंग की है। यहां होली के बाद खास वक्त आता है, जब यहां काफी भीड़ होती है और इसके अलावा भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े दिनों पर भी यहां काफी भीड़ होती है। नाथद्वारा, उदयपुर से मात्र 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। नाथद्वारा, भगवान श्रीनाथजी के मंदिर की वजह से देश—विदेश में प्रसिद्ध धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में जाना जाता है।
ऐतिहासिक मान्यतानुसार, औरंगजेब जब सभी मंदिरों को तोड़ रहा था इस समय राणा राजसिंह ने खुलकर औरंगजेब को चुनौती दी और कहा कि उनके रहते हुए बैलगाड़ी में रखी श्रीनाथजी की मूर्ति को कोई छू तक नहीं पाएगा। मंदिर तक पहुंचने से पहले औरंगजेब को एक लाख राजपूतों से निपटना होगा। उस समय श्रीनाथजी की मूर्ति बैलगाड़ी में जोधपुर के पास चौपासनी गांव में थी और चौपासनी गांव में कई महीने तक बैलगाड़ी में ही श्रीनाथजी की मूर्ति की उपासना होती रही।
यह चौपासनी गांव अब जोधपुर का हिस्सा बन चुका है और जिस स्थान पर यह बैलगाड़ी खड़ी थी, वहां आज श्रीनाथजी का एक मंदिर बनाया गया है। बताते चलें कि कोटा से 10 किमी दूर श्रीनाथजी की चरण पादुकाएं उसी समय से आज तक रखी हुई हैं, उस स्थान को “चरण चौकी” के नाम से जाना जाता है। बाद में चौपासनी से मूर्ति को सिहाड़ लाया गया। दिसंबर 1671 को सिहाड़ गांव में श्रीनाथ जी की मूर्तियों का स्वागत करने के लिए राणा राजसिंह स्वयं गांव गए। यह सिहाड़ गांव उदयपुर से 48 किलोमीटर एवं जोधपुर से लगभग 220 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है जिसे आज हम नाथद्वारा के नाम से जानते हैं। फरवरी 1672 को मंदिर का निर्माण संपूर्ण हुआ और श्री नाथ जी की मूर्ति मंदिर में स्थापित कर दी गई।