हर साल 16 सितंबर को विश्व ओज़ोन दिवस (World Ozone Day) मनाया जाता है। यह दिन हमें याद दिलाता है कि हमारी पृथ्वी को बचाने में ओज़ोन परत कितनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ओज़ोन परत सूर्य से आने वाली हानिकारक अल्ट्रावॉयलेट (UV) किरणों को रोकती है और जीवन को सुरक्षित रखती है। अगर यह परत खत्म हो जाए तो इंसानों, जानवरों और पौधों के जीवन पर गंभीर असर पड़ेगा।
ओज़ोन दिवस का इतिहास
1980 के दशक में वैज्ञानिकों ने पाया कि ओज़ोन परत धीरे-धीरे पतली हो रही है और अंटार्कटिका के ऊपर इसका एक बड़ा छेद बन चुका है। इसका कारण था क्लोरोफ्लोरोकार्बन (CFCs) और अन्य रसायनों का बढ़ता प्रयोग, जो फ्रिज, एसी और स्प्रे जैसे उत्पादों में इस्तेमाल होते थे।
इसी खतरे को देखते हुए 1987 में दुनिया के देशों ने मिलकर “मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल” पर हस्ताक्षर किए। इसे अब तक का सबसे सफल पर्यावरण समझौता माना जाता है। इस प्रोटोकॉल की बदौलत धीरे-धीरे ओज़ोन परत की मरम्मत होने लगी।
2025 की थीम
इस साल ओज़ोन दिवस की थीम है:
“ओज़ोन परत की सुरक्षा – जलवायु और जीवन के लिए ज़िम्मेदारी”
इसका संदेश है कि हमें सिर्फ ओज़ोन परत ही नहीं बल्कि जलवायु और प्राकृतिक संसाधनों की भी रक्षा करनी होगी।
भारत में कार्यक्रम
भारत में पर्यावरण मंत्रालय, विभिन्न गैर-सरकारी संगठन और स्कूल-कॉलेज इस दिन को खास तरीके से मनाते हैं।
ओज़ोन परत को नुकसान पहुंचने से क्या होता है?
अगर ओज़ोन परत कमजोर होती है तो:
हमें क्या करना चाहिए?
निष्कर्ष
ओज़ोन दिवस हमें यह याद दिलाता है कि धरती पर जीवन तभी सुरक्षित रहेगा जब हम अपनी प्राकृतिक ढाल – ओज़ोन परत – की रक्षा करेंगे। यह सिर्फ सरकारों या संगठनों की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि हर इंसान को अपनी भूमिका निभानी होगी।