प्रभु श्रीराम के अनन्य भक्त हनुमान जी को समर्पित यह मंदिर भारत में उत्तरप्रदेश प्रांत की राजधानी लखनऊ में गोमती नदी के किनारे स्थित है। भक्तों की अटूट आस्था का केंद्र हनुमान सेतु धाम एक ऐसा चमत्कारी धाम है जहां से कोई खाली नहीं जाता। यहां पर अंजनी पुत्र हनुमान को चिट्ठी वाले बाबा और ‘ग्रेजुएट हनुमान’ भी कहा जाता है। हालांकि बहुत ही कम लोग इसके पीछे की वास्तविकता को जानते हैं। दरअसल देश और विदेशों से श्रद्धालुओं द्वारा अपनी मनोकामनाएं चिट्ठी पर लिखकर मंदिर के पते पर भेजने का चलन है। हर साल करीब 3 लाख चिट्ठियां भक्त बाबा के दरबार में भेजते हैं। वहीं, जब रात 10 बजे के बाद मंदिर के पट बंद हो जाते हैं, तो पुजारी हनुमान जी के श्री चरणों में बैठकर सभी चिट्ठियों को पढ़कर उनको सुनाते भी हैं।
हनुमान सेतु मंदिर (Hanuman Setu Mandir) लखनऊ में आस्था और विश्वास का एक अद्भुत और चमत्कारिक स्थल है। मान्यता है कि भक्ति में लीन होकर, सच्चे व निश्छल मन से मांगी गई हर मनोकामना यहां पूरी होती है। मंदिर के दर्शन के बाद असंभव काम भी संभव हो जाता है। हम बात कर रहे हैं पवनपुत्र, महावीर बजरंगबली हनुमान जी महाराज के प्रसिद्ध हनुमान सेतु धाम की। हनुमान सेतु धाम की स्थापना 26 जनवरी, 1967 को बसंत पंचमी के दिन अनूठे चमत्कार के साथ हुई। करीब 60 वर्षों से हर भक्त की कामना पूरी होने का वही सिलसिला आज भी जारी है।
हनुमान सेतु मंदिर ट्रस्ट के सचिव और रिटायर्ड आईएएस दिवाकर त्रिपाठी कहते हैं कि पहले बाबा नीब करौरी ने गोमती नदी के किनारे अपना मंदिर बनाया था। इसके बाद जब बाढ़ नियंत्रण के लिए गोमती नदी पर बांध बनाने का काम शुरू हुआ, तब तत्कालीन मुख्यमंत्री चंद्रभानु गुप्त ने बगल की नजूल की जमीन पर दूसरा मंदिर बनवाने की बात कही। जिसके बाद मंदिर निर्माण होने के बाद बाबा जी को समर्पित किया गया था। बाबा नीम करौरी ने मंदिर निर्माण के दौरान कहा था जो भी यहां दर्शन करेगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगीं।
बताते हैं कि बाबा नीब करौरी ने एक भक्त को बजरंगबली के विग्रह बनाने की जिम्मेदारी सौंपी। जब विग्रह बनकर आया तो खुद बाबा ने ही इसकी प्राण-प्रतिष्ठा की। वेद विद्यालय के प्राचार्य चंद्रकांत द्विवेदी के मुताबिक, गिरिजा शंकर पांडेय और लखनऊ यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर रामनारायण त्रिपाठी जी प्राण-प्रतिष्ठा के समय मौजूद थे। बाबा जी ने जैसे ही हनुमानजी के कंधों पर हाथ रखा, एक दिव्य ज्योति प्रज्वलित हुई थी। यह कहां से आई और कहां समाहित हुई किसी को कुछ नहीं पता? जिसे उस समय मौजूद लोगों ने भी देखा था। मंदिर परिसर में बाबा नीब करौरी जी की मूर्ति भी स्थापित है।