Shardiya Navratri 2025: शक्ति की उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्रि कल 22 सितंबर से शुरू हो कर 1 अक्टूबर तक, जानें घट स्थापना का शुभ मुहूर्त।

Shardiya Navratri 2025: शक्ति की उपासना का महापर्व शारदीय नवरात्रि कल 22 सितंबर से शुरू हो कर 1 अक्टूबर तक, जानें घट स्थापना का शुभ मुहूर्त।
September 21, 2025 at 8:40 pm

Shardiya Navratri 2025: इस वर्ष शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर, सोमवार से प्रारंभ हो रहे हैं। हिंदू धर्म में नवरात्रि के पर्व का विशेष महत्व होता है। साल भर में कुल 4 नवरात्रि आती हैं, जिसमें चैत्र और शारदीय नवरात्रि का खास महत्व होता है, जबकि 2 गुप्त नवरात्रि होते हैं। नवरात्रि में देवी दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों की पूजा-आराधना करने का विधान होता है।

शारदीय नवरात्रि का महत्व

नवरात्रि के पहले दिन यानी आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि पर कलश स्थापना के साथ विधि-विधान से 9 दिनों तक लगातार पूजा-पाठ और मंत्रोचार के साथ मां दुर्गा की स्तुति की जाती है। इस साल 2025 में शारदीय नवरात्रि पर देवी दुर्गा हाथी पर सवार होकर पृथ्वी पर आ रही हैं। मान्यताओं के अनुसार, नवरात्रि के 9 दिन तक मां दुर्गा अपने भक्तों के बीच में रहती हैं और सभी को सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देती हैं। आइए जानते हैं इस शारदीय नवरात्रि पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त, पूजा-विधि, मंत्र और महत्व के बारे में।

2025 शारदीय नवरात्रि कलश स्थापना मुहूर्त

वैदिक पंचांग के अनुसार इस बार आश्विन माह की प्रतिपदा तिथि की शुरुआत 22 सितंबर को अर्धरात्रि 1:25 बजे से होगी, जबकि इसका समापन 23 सितंबर को देर रात 2 बजकर 57 मिनट पर होगा।

  1. पहला शुभ मुहूर्त – सोमवार, 22 सितंबर को सुबह 6:04 से 7:35 तक अमृत चौघड़िया में।
  2. दूसरा शुभ मुहूर्त – सोमवार, 22 सितंबर को 09:06 से 10:37 तक
  3. तीसरा शुभ मुहूर्त – सोमवार, 22 सितंबर को अभिजीत मुहूर्त: 11:44 से 12:33 तक


कलश स्थापना की विधि

शास्त्रानुसार, कलश में जल को ब्रह्मांड की सभी सकारात्मक ऊर्जाओं का स्रोत माना गया है। इसे देवी दुर्गा की शक्ति और सृजन की प्रतीकात्मक उपस्थिति माना जाता है। कलश स्थापना के साथ ही देवी दुर्गा के इस महापर्व की पूजा आरंभ होती है। कल 22 सितंबर 2025 को प्रतिपदा तिथि पर स्नान कर मन में माता का ध्यान करते हुए विधिवत पूजा आरंभ करें। कलश स्थापना के लिए सबसे पहले एक मिट्टी के पात्र में या किसी शुद्ध थाली में मिट्टी और उसमें जौ के बीज डाल लें। इसके उपरांत मिट्टी के कलश या तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर ऊपरी भाग में मौली (कलावा) बांध लें। इसके बाद लोटे में जल भर लें और उसमें थोड़ा गंगाजल जरूर मिला लें। फिर कलश में दूर्वा, अक्षत, सुपारी, इलायची और चांदी का सिक्का रख दें। इसमें आम के 5 पत्ते कलश में रख दें। इसके बाद एक पानी वाला नारियल लें और उस पर लाल वस्त्र लपेटकर मौली बांध दें। फिर इस नारियल को कलश के बीच में रखें और पात्र के मध्य में कलश स्थापित कर दें। यथाशक्ति दुर्गा सप्तशती का पाठ करें, नवार्ण मंत्र (ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चै) का कम से कम 108 बार जप करें, अंत में दुर्गा चालीसा का पाठ करें और आरती करें।